आंगन में चहकती गौरैया याद आती है. अब शायद आंगन खाली दिखते होंगे. यहां तक कि बचपन में मुंडेर पर बैठे जिस कौवे की कर्कश आवाज परेशान करती थी, वो आवाज भी अब कम ही सुनाई देती है.
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पर्यावरण दिवस विशेष: गौरैया से लेकर गिलहरी तक... सोचा है हमारे देखते-देखते कितनी चीजें गायब हो गई
Reviewed by Jyoti Jayswal
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June 05, 2019
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